3 डॉक्टर विशेषांक लेखनी कहानी -02-Jul-2022 झोला छाप डॉक्टर
शीर्षक = झोला छाप डॉक्टर
बड़े साहब , बड़े साहब वो बाहर गांव वालो का हज़ज़ूम जमा हो गया हे । वो कह रहे हे अंदर जो आदमी बंद हे उसे छोड़ दो नही तो वो लोग भूखे प्यासे यही थाने के सामने बैठे रहेंगे । बाहर खड़े दरोगा ने अंदर आकर बताया ।
"क्या वो लोग जानते नही हे की जो आदमी इस समय जैल के अंदर मौजूद हे वो एक झोला छाप डॉक्टर हे जिसके पास आधी अधूरी डिग्रियां हे और इन गांव वालो की ज़िन्दगी के साथ वो खिलवाड़ कर रहा हे । चंद पैसो के लिए " उस बड़े स्पेक्टर ने कहा
"साहब वो जानते हे लेकिन फिर भी वो लोग उसे बचाने के लिए बाहर खड़े हे " हवलदार ने कहा
"खड़ा रहने दो थोड़ी देर धूप में खड़े रहेंगे तो खुद अपने आप चले जाएंगे जाओ मेरे लिए नीम्बू पानी लेकर आओ " स्पेक्टर ने कहा
सुबह से शाम हो चली लेकिन गांव वाले वहा से नही हिले। स्पेक्टर भी परेशान होने लगा और आखिर कार वो बाहर निकल कर आया और बोला " तुम लोग बेवजह ज़िद्द कर रहे हो वो एक झोला छाप डॉक्टर हे जो तुम लोगो की ज़िन्दगीयों के साथ खिलवाड़ कर रहा हे चंद पैसो के लालच में तुम्हे बेवक़ूफ़ बना रहा हे तुम सीधे साधे लोगो को "
स्पेक्टर की बात सुन हरिया आगे आया और बोला " साहब वो आपके लिए झोला छाप डॉक्टर होगा हमरे लिए वो भगवान समान हे ।
जी साहब हरिया भाई सही कह रहा है विशाल आप लोगो के लिए झोला छाप डॉक्टर होगा लेकिन हमारे लिए खुदा की तरफ से भेजा हुआ एक फरिश्ता है जिसके हाथ में भले ही आधी अधूरी डिग्रियां है लेकिन उसके हाथ में खुदा ने बहुत शिफा दी है जो मुर्दे को भी ज़िंदा करदे ।जुम्मन चाचा ने कहा
साहब विशाल साहब को छोड़ दो, वो कोई झोला छाप डॉक्टर नही है वो मसीहा है हम गांव वालो के लिए भले ही उसके पास डिग्रियां नही है लेकिन वो शहर के डॉक्टरों जैसा नही है जो इलाज के नाम पर मरीज का गला तक काट लेते है । अमीर मरीजो को पहले देखते है और गरीब मरीज़ों को बाद में इलाज के नाम पर सिर्फ और सिर्फ ढेर सारी दवाये दे देते है भले ही उनके पास डिग्रियां है लेकिन उनके पास हृदय नही है जिसमे मरीज़ के प्रति दया होनी चाहिए । कभी कभी मरीज डॉक्टर के अच्छे व्यवहार से भी आधा ठीक हो जाता है और उसे अपनी सारी परेशानी बता देता है जो कुछ भी उसके शरीर में परेशानी होती है ।
अब तक विशाल साहब ने हम गांव वालो की ना जाने कितनी बार जाने बचा ली है कभी तेज बुखार में तड़पते हमारे बच्चों की जिन्हे शहर ले जाना हम लोगो के बस में नही होता और कभी कभी प्रस्व पीड़ा से मर रही महिलाओ का इलाज अपनी पत्नि के साथ मिलकर कर देते और उन्हें शहर के लम्बे सफऱ का सामना नही करना पड़ता ।
साहब डॉक्टर विशाल हमारे लिए हमेशा ही डॉक्टर रहेंगे और एक असली डॉक्टर जिसके पास डिग्रियां ना होते हुए भी वो एक असली डॉक्टर का फर्ज़ निभा रहे है जबकी इस कलयुग में तो लोग डॉक्टर बन ही इसलिए रहे है ताकि गरीब लोगो से मोटी रकम एठ कर अपनी तिजोरिया भर सके । अपनी फीस लेकर और मेडिकल से कमिशन लेकर वो गरीब जनता को लूट रहे है और रही बात सरकारी डॉक्टर्स की तो वो अपने घरों में प्राइवेट क्लिनिक खोले हुए है अब हम लोग जाए तो जाए कहा
हम लोगो के लिए तो यही डॉक्टर्स जो आपकी नज़र में झोला छाप होते है हमारे लिए किसी फ़रिश्ते से कम नही होते जो हमारी ज़रुरत के हिसाब से बिना अपनी कोई फीस लिए और ना किसी मेडिकल पर भेजे हमें अपने पास से ही मुनासिब दामों में दवा दे देते है और कभी कभी मुफ्त भी दे देते है ।
जी स्पेक्टर साहब जुम्मन चाचा सही कह रहे है इनकी एक एक बात के हम सब गवाह है । डॉक्टर् विशाल भले ही आपकी नज़रो में झोला छाप डॉक्टर् है लेकिन हमारे लिए किसी देवता से कम नही जो हम गरीब गांव वालो के खून पसीने की कमाई को शहर के उन पढ़े लिखें डॉक्टर के हाथो में जाने से बचाते है जिन्हे इलाज के नाम पर सिर्फ लूटना आता है ।
स्पेक्टर साहब , डॉक्टर् विशाल की डिग्रियां भी किसी मजबूरी के तहत पूरी ना हो सकी क्यूंकि उनके पिता जी जो की एक महान इंसान थे हमारे गांव के लिए उन्होंने अपनी आधे से ज्यादा ज़मीन गरीबो के नाम करदी थी । और छोटा सा टुकड़ा अपने लिए रखा जिसे वो विशाल साहब के लिए छोड़ मरे और एक घर जिसमे वो रहते है ।
वो नही जानते थे की डॉक्टरी की पढ़ाई इतनी महंगी होती है उनका वो ज़मीन का टुकड़ा आधी पढ़ाई में ही खत्म हो गया अब उनके पास कुछ नही बचा था बेचने को घर नही बेच सकते थे क्यूंकि वहा उनकी यादें जुडी थी इसलिए जितना ज्ञान उन्हें मिला उन्होंने उसी का सदुपयोग किया और हम लोगो के मसीहा बन गए ।
लेकिन अगर उन्हें मसीहा बने रहने के लिए अपनी डिग्रियां मुकम्मल करनी होंगी तो उसमे हम सब उनका साथ देंगे हम सब अपने घरो से पैसे इकठे करके उन्हें शहर जाकर अपनी डिग्री मुकम्मल करने का कहेँगे ताकि हमारा मसीहा हमारे ही गांव में रहे और हमें शहर के उन डॉक्टर्स के पास जाने से बचा सके जो लूट मचाये फेके दे रहे है इस मेहंगाई के दौर में। विशाल के पिताजी के दोस्त शम्बू ने कहा.
सब लोग राज़ी हो गए । स्पेक्टर साहब उन सब की बाते सुन असमंजस में पड़ गए और ना चाहते हुए भी डॉक्टर विशाल को रिहा कर दिया।
डॉक्टर् विशाल को जब स्पेक्टर ने बाहर हुयी वार्तालाप के बारे में बताया तो उसकी आँखे छलक आयी और वो रोता हुआ बाहर जाकर गांव वालो के गले लग गया । गांव वालो ने भी उसे प्यार से गले लगाया और सब लोगो ने अपनी हैसियत के अनुसार पैसे दिए जिसके बाद विशाल ने शहर जाकर अपनी डिग्रियां मुकम्मल की और लाइसेंस लेकर गांव वालो के बीच उनकी सेवा करने के लिए आ गया जो की एक असल डॉक्टर् का फर्ज़ होता है ।
. सब लोग बेहद खुश थे ।
डॉक्टर् विशेषांक पर लिखी कहानी
Seema Priyadarshini sahay
06-Jul-2022 08:04 PM
बहुत खूबसूरत
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Pallavi
05-Jul-2022 02:58 PM
बहुत ही खूबसूरत रचना
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Punam verma
05-Jul-2022 12:16 AM
Nice
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